Jyotish shastra :-Rog parikshan
jaan hai to jahaan hai
रविवार, 22 अगस्त 2010
चिकित्सा ज्योतिष और आयुर्वेद
प्राचीन भारत की चिकित्सा पध्यति और आयुर्वेद में गहरा सम्बन्ध है आयुर्वेद में आयुतात्वो की विवेचना की जाती है और ज्योतिर्विज्ञान में कालतत्व का अध्यन किया जाता है जिसे कालचक्र कहते है आयुर्वेद प्राकृतिक चिकित्सा पध्यति पर आधारित है प्राचीन काल में योग ,मंत्र एवं मनोविज्ञान के द्वारा शल्यचिकित्सा की जाती थी तथा जडी -बूटियों से ओषधियो का निर्माण होता था आयुर्वेद एवं ज्योतिष दोनों का सम्बन्ध मानव से अलग नही है ज्योतिर्विज्ञान में तारा पुंजो के तीन समुदाय है ,जिनका सम्बन्ध आयुर्वेद के त्रिदोष से है जब विज्ञानं ने इतनी प्रगति नही की थी तब जन्मांग चक्रो के आधार पर वैद्य रोगों का परिक्षण करते थे ,रोगी के बाह्य लक्षण उस आंतरिक रोग के परिचायक होते थे जन्मकुंडली रोग की सम्पूर्ण अवस्थावो को प्रर्दशित कर सकता है भौतिक चिकित्सा प्रणाली से अधिक सुक्ष्म एवं प्रभावशाली उपचार का माध्यम ज्योतिष शास्त्र है इस सौर मंडल में संचालित सभी मुलभुत शक्तियो का प्रतिनिधित्व ग्रह ही कर रहे है यही ग्रह हमारे शरीर पर भी प्रभाव रखते है जब विरोधी शक्तिया निषेधात्मक रश्मियों के रूप में हमारे आतंरिक ग्रह मंडल को बाधित करती है ,तब रोग की उत्पत्ति होती है एक चिकित्सक रोग होने पर केवल परिक्षण के उपरांत ही रोग क्या है ?यह बता पाता है ,किंतु अक योग्य देवज्ञ रोग होने से पूर्व ये घोषित करता है उसे अमुक रोग अमुक समय में होगा और अमुक समय तक रहेगा रोगी जिस समय देवज्ञ के पास आता है, उस समय की प्रश्न कुंडली बना कर ये ज्ञात कर सकते है की रोगी स्वस्थ होगा या नही ?यह रोग कब तक रहेगा ? यदि पूर्व ज्ञान हो तो चिकित्सा शास्त्र में आशातीत सफलता प्राप्त होते देर नही लगता कई बार अध्यात्मवाद ,ज्योतिष तथा इष्ट साधन बहुत सहायक होते है इस तथ्य को हम माने या न माने चिकित्सा शास्त्र हो या ज्योतिस्शास्त्र यह हमारे पूर्वजो की ही देन है चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब का उपग्रह है समीप होने के कारन यह मानव जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करता है प्रत्येक जीव सूर्य ,चंद्रमा एवं अन्य ग्रहों ,१२ राशियो से प्रभावित होते है पृथ्वी सौरमंडल का महत्वपूर्ण हिस्सा है पृथ्वी में पाए जाने वाले प्रत्येक तत्व का सम्बन्ध ग्रहों से है मानव एवं संपूर्ण ब्रम्हांड एक दुसरे पर अन्योनाश्रित है १२ रशिया कालपुरुष के विभिन्न अंगो का प्रतिनिधित्व करतीहैजो निम्न है :- १.मेष :-सर मस्तिष्क ,मुख ,सम्बंधित हड्डिया २.वृषभ :-गर्दन ,गाल .दाया नेत्र ३.मिथुन: -कन्धा ,हाथ ,श्वासनली .दोनों बाहू ४कर्क :-ह्रदय ,छाती ,स्तन ,फेफड़ा .पाचनतंत्र ,उदर ५.सिंह :-ह्रदय ,उदर ,नाडी ,स्पाईनल ,पीठ की हड्डिया ६.कन्या :-कमर ,आंत ,लिवर ,पित्ताशय ,गुर्दे और अंडकोष ७तुला :-वस्ति नितम्ब ,मूत्राशय ,गुर्दा ८.वृश्चिक :-गुप्तेंद्रिया ,अंडकोष ,गुप्तस्थान ९.धनु :-दोनों जंघे ,नितम्ब १०.मकर :-दोनों घुटने ,हड्डियों का जोड़ ११.कुम्भ :-दोनों पिंडालिया ,टाँगे १२.मीन :-दोनों पैर .तलुए राशियों के भांति ग्रह नक्षत्र में भी स्थायी गुन दोष है जिनके आधार पर रोगों के परिक्षण में सरलता आ जाता है
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