"ह्रदय "






"ह्रदय "के बिना जीवन सम्भव नही है "ह्रदय "हमारे शरीर में रक्त का संचार वाहक ही नही अपितु "प्राण "का केन्द्र बिन्दु है २४ घंटे में १०००००लाख बार धड़कने वाला ये दिल क्या कभी थकता है ?हमारा ह्रदय १ मिनिट में ५ लीटर रक्त पम्प करता है मोटोनरी नामक मुख्य धमनिया १८ उपशाखाओ के साथ पुरे शरीर में रक्त की गति विधि को नियंत्रित करती है इन्ही किसी धमनियों में रक्त प्रवाह में रूकावट आने पर इन्जाइना एवं हार्टअटैक होता है एंजियोग्राफी अर्थात धमनी नलियो की तस्वीर ली जाती है ह्रदय को रक्त पहुचने वाली कोरोनरी नली का तस्वीर लिया जाता है एंजाइना से सीने का दर्द होता है ह्रदय रोग का भान होने पर तत्काल चिकित्सा परम आवश्यक है परिक्षण के उपरांत टीएम् टी करना चाहिए वर्तमान में चिकित्सा प्रणाली में काफी सुधार हुआ है "हार्ट ट्रांसप्लांट ,एंजियोप्लास्टिक ,इसमे नली बदलने के स्थान पर बैलून क्रिया द्वारा रक्त के जमाव को साफ़ कर नली में स्प्रिंग लगा दिया जाता है इसी को एंजियोप्लास्टिक कहते है
आयुर्वेद में ह्रदय रोग को तीन प्रकार में विभक्त किया गया है
१.शैलेश्मिक ह्रदय रोग २.वातिक ह्रदय रोग ३.पैत्तिका ह्रदय रोग इनमे त्रिदोशो को कारक माना गया है
ज्योतिष शास्त्र में इस का विश्लेषण शीघ्र और मंद गति से उत्पन्न होने वाले ह्रदय रोगों से किया जाता है जन्मांग चक्र में चतुर्थ स्थान ह्रदय का है इसका कारक ग्रह चंद्रमा है सूर्य से ह्रदय रोगों के कारणों का पता चलता है सिंह राशिः इसकी प्रतिनिधि राशि हैप्राचीन विधाओ में कहा गया है "स्वाजातिजाया गमने जायते हृदयावार्निया "अर्थात अपनी गोत्र एवं जाती की स्त्री से गमन करने से यह रोग होता है इसलिए व्यसन एवं स्त्रीगमन से बचाव आवश्यक है
सबसे बड़ी बात तो यह है की इंसान जितना अधिक तनावग्रस्त रहेगा रोग उतनी जल्दी उस पर संक्रमित होगे हमारे ह्रदय का सम्बन्ध "अनाहत "चक्र से है जिसका स्वामी ग्रह "शुक्र "है शुक्र चंचलता ,उग्रता ,समग्रता का प्रतिनिधि है साथ ही यह करुना दया ,प्रेम ,राग -अनुराग ,द्वेष का भी कारक है इसी ग्रह की शुभ -अशुभ स्थिति हमारे जन्मांग चक्र में होने से फलीभूत होती है लेकिन इस ग्रह के गुणावगुण को धारण करने से पहले हम अपने विवेक का प्रयोग करे तो इस तरह के रोग से बचा जा सकता है वर्तमान समय में भागती दौडती जिन्दगी में सहज रहना सम्भव नही है पर जान है तो जहान है अपने जीवन में जितनी शान्ति रहेगी उतना ही हम रोग मुक्त होगे मेरे कहने का मतलब ये नही की अपना काम छोड़ कर पूजापाठ में लग जाए बल्कि भौतिकता के साथ कुछ अध्यात्मिक पुट का होना जीवन के संतुलन के लिए आवश्यक है
ज्योतिष दृष्टिकोण से सूर्य ,चन्द्रमा ,मंगल ,चतुर्थ भावः .चतुर्थ स्थान का स्वामी ,षष्ठं भावः ,षष्ठेश भी इस रोग से सम्बन्ध रखते है सूर्य +मंगल की युति ,केतु और मंगल का एक ही भावः में होना ,आदि ह्रदय रोग के कारण है
उपाय :-सर्वप्रथम उचित चिकित्सा ,ज्योतिष परामर्श में ध्यान और शान्ति के साथ दैनिकचर्या का निर्धारण करना उचित आहार विहार ,अत्यधिक वजन से बचाव ,गरिष्ठ एवं नशीली वस्तुओ के सेवन में प्रतिबन्ध होना चाहिए हरी एवं अंकुरित सब्जियों का सेवन करे प्रतिदिन योग को प्राथमिकता देवे
सूर्य ह्रदय कारक है अतः इस ग्रह का उन्नत होना आवश्यक है अतः सूर्य के नियमित जाप से भी इस रोग से मुक्ति मिलती है कारण सूर्य बीज मंत्र के जाप से अनाहत चक्र में उर्जा शक्ति का संचार तीव्रता से होने लगता है ओरह्रदय में रक्त का जमाव नही होता "हं "बीज मंत्र के जाप से इडा ,पिंगला और सुषुम्ना नाडी में त्रियामी शक्ति संचारित होती है ,जो स्वयं प्राण कारक है

रत्न धारण करने से पहले ज्योतिष परामर्श अवश्य लेवे|

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