सूर्य


 (अजीर्ण ,मन्दाग्नि ,अतिसार )


वायु का एकत्रित ,पेट फूलना ,जठारांत पथ ,में वायु का अवरोध होने की अवस्था में अजीर्ण ,अतिसार ,एवं मन्दाग्नि जैसे रोग उत्पन्न होते है 
लक्षण :-रोगी काफी बैचैन और कष्ट से गुजरता है साथ ही उदर की नसे तन जाती है मल अवरोधता.छाती में जलन होने लगता है
कारण :-पाचन ना होना ,पित्त की न्यूनता कारक ग्रह :-सूर्य ,सूर्य और मंगल ग्रह की युति से उदा .:-जातक का जन्म ३१-१०-१९६३ में रात्रि के ००.०० बजे आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में हुआ है कर्क लग्न के उदय में जातक के जन्मांग चक्र में सूर्य चतुर्थ भावः में अपने शत्रु शुक्र और बुध के साथ तुला राशिः में स्थित है तथा पंचम भावः जो उदर स्थान है ,में स्वयं की राशिः वृश्चिक पर मंगल ग्रह स्थित है मंगल अग्नि तत्त्व है अतः उदर विकार होना स्वाभाविक है साथ ही जातक की कुंडली में वर्तमान में सूर्य की महादशा २०१२ तक प्रभाव रखे हुए है वर्तमान में जातक अजीर्ण से पीड़ित है यहाँ सूर्य और मंगल ग्रह के प्रभाव से जातक को उपरोक्त लक्षणों के साथ यह रोग उत्पन्न हुवा है जो समय समय में इन्हे बाधित करते रहेगा यदि इस जातक का अध्यात्मिक विश्लेषण करे तो मणिपुर से अनाहत चक्र बाधित है सूर्य की महादशा शुरू होते ही यह जातक इस रोग से पीड़ित हुआ है ज्योतिषी उपाय :-इस स्थिति में सूर्य की शुभता के लिए मानसिकता के साथ साथ खानपान में नियंत्रण आवश्यक है सूर्य नमस्कार ,योग एवं ध्यान के माध्यम से सूर्य जनित रोगों से मुक्ति पाया जा सकता है सूर्य साधना अतिउत्तम है कई बार साधना के नाम से ही लोगो के मध्य भ्रांतिया आ जाती है और लोग इसे तंत्र -मंत्र का रूप दे देते है किंतु सूर्य साधना स्वयं आत्मसाक्षात्कार का प्रथम पायदान है इससे प्राप्त उर्जा शक्ति का सीधा सम्बन्ध पित्ताशय से है तथा यह जठराग्नि को शांत कर रोग शमन करता है अत चिकित्सा के साथ सूर्य साधना अति उत्तम है

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