मधुमेह


इंसुलिन हारमोंस खून में शक्कर को नियंत्रित करता है यह हारमोंस पेट के पीछे की और स्थित पैनक्रियाज में आइलेट आफ लैंगरहान्स कोशिकाये होती है इनमे कुछ अल्फा और कुछ कोशिकाये होती है अल्फा कोशिकाओ में ग्लुकागन तथा बीटा में इंसुलिन हारमोंस बनते है यह यकृत में उपस्थित निर्माण पर नियंत्रण रखता है यह हाशरीर की कोशिकाओ मेन ग्लूकोज के आक्सीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाता हैं तथा अतिरिक्त ग्लूकोज को यकृत तथा मांस पेशियों में ग्लायिकोजिन के रूप में निक्षेपित करता है यदि पैनक्रियाज में इंसुलिन कम मात्रा में लगे तो व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित हो जाता है साथ ही खून शुगर की मात्रा सामान्य से अधिक बढ़ जाता है मधुमेह के रोगी को बार बार मूत्र त्यागने की प्रवृति होती है मूत्र के द्वारा काफी मात्रा में शुगर निकल जाता है रोगी को अत्यधिक भूख ,प्यास लगता है साथ ही शरीर में कमजोरी और शिथिलता आने लग जाता है|

ज्योतिषी विश्लेषण :- :-जन्मांग चक्र में इस रोग का प्रमुख कारक ग्रह शनि एवं गुरु ग्रह को माना जाता है आइये इस कुंडली का विश्लेषण करे :-जातक का जन्म २७-११-१९६० रात्रि ००.३० बजे त्रिचुर जिला केरल में हुआ है जातक का जन्म सिंह लग्न में पूर्व भाद्रपद नक्षत्र के द्वितीय चरण में गुरु की महादशा में हुआ है ज्योतिष की दृष्टीमें कर्क राशि ,चन्द्रमा ,गुरु ,शनि एवं शुक्र ग्रह के साथ पंचम .तथा द्वादश में क्रूर ग्रहों की दृष्टी से यह रोग उत्त्पन्न होता है जातक की कुंडली में लग्न भाव से पीड़ित है साथ ही लीवर एवं पैनक्रियाज का स्वामी गुरु शनि एवं शुक्र के साथ लिवर ,यकृत स्थान को बाधित किए है कर्क राशिः ग्रह चंद्रमा मूत्राशय स्थान पर केतु से बाधित है अतः जातक वर्तमान में मधुमेह के साथ ह्रदय रोग से भी पीड़ित है जातक के चक्र में चन्द्रमा के साथ और गुरु अत्यन्त पापी ग्रह है

यदि हम जातक के चक्र का अध्यात्मिक विश्लेषण करे तो तो रोग का महत्वपूर्ण कारण उच्च महत्वकांक्षा ,अत्यधिक शराब का सेवन ,साथ ही वंशानुगत भी कहा जा सकता है कारण जातक की कुंडली में लग्न का स्वामी सूर्य अनाहत स्थान परहोने के कारण व्यग्रता ,अशांति और त्वरित निर्णय क्षमता को बढाता है सर्वप्रथम शुगर का महत्वपूर्ण कारण चिंता एवं अत्यधिक मानसिक अंतर्द्वंद है उदर स्थान पर शुक्र ,शनि एवं गुरु ग्रह का योग जातक को व्यसन की और प्रेरित करता है (यदि गुरु ,शुक्र .शनि से युक्त हो तो यह रोग होता है ),वंशानुगत का कारक सूर्य वृश्चिक राशिः (जो परिवार का स्थान है )बाधित होने के कारण यह पैतृक कारको को भी संकेत देता है शास्त्रों में,पापो से रोगोत्त्पत्ति , अनियमित एवं स्वछंद यौनाचार से इस रोग की उत्त्पत्ति माना गया है

निवारण :- मधुमेह के लिए आयुर्वेद में कई निदान बताये गए है परन्तु कुछ सरल उपाय हमारे भीतर ही छिपा है "ध्यान ,धारणा और समाधि "अर्थात मनन ,चिंतन ,और आत्मविश्वास जीने की बहुत सी कलाए है माध्यम आप को चुनना है यदि हम जीवन में सरलता ले आए तो शायद कोई रोग ही ना हो किंतु वर्तमान में इस भागती दौडती जिन्दगी मेंयह सम्भव नही ,मुश्किल भी नही आज हम अपने आप से ज्यादा दुसरो के लिए दुखी है वो चाहे स्वजन हो या परायी पीडा बहुत आगे निकलने की होड़ में ना जाने कितने पीछे हो गए जहा अंत में प्राप्त हुआ तो रोग व्याधि ऐसा जीवन भी किस काम का ?गुरु ,शनि शुक्र कौन है ये?ग्रह या हमारे आस पास मंडराती विपरीतताए ?सत्य तो यह है की हम कभी ख़ुद को समक्ष ही नही पाए ?यदि भाग्य को विधाता ने बनाया है तो विधि को हमारे हाथो में भी सौपा है हम अपने विवेक से विधान बना सकते है ध्यान सबसे बड़ा माध्यम है जहाँ चिंता ,चिंतन का रूप ले कर जीवन में दुखो को सुख में बदलने का उपक्रम करती है "आत्मविश्वाश "रोग प्रतिरोधक क्षमता को स्वतः बढ़ाने में सहायक होती है शरीर के हम कह सकते है -१पानी ज्यादा पिए २.स्वच्छ वायु का सेवन करे ३.खानपान में नियंत्रण रखे ४.नियमित रक्त ,और पेशाब की जाँच कराए ५.शराब के सेवन से बचे ६.अंकुरित भोजन करे ७.व्यसनों से बचे दिकिंतु साधना भी एक महत्वपूर्ण निदान है यदि हम गुरु ग्रह की साधना करे तो मधुमेह जैसे रोगों पर नियंतरण पाया जा सकता है इसका पुरा सम्बन्ध यकृत भाग से है गुरु साधना से यह भाग पूर्ण जागृत हो कर हार्मोन्स को नियंत्रित करता है

रत्न चिकित्षा में एक रत्ती हीरा या सफ़ेद पुखराज ,या सफ़ेद मूंगा भी धारण कर इस रोग पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है

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