काल पुरूष और ग्रहों का प्रभाव



मानव जीवन पुर्णतः रहस्यों से घिरा है इस संसार की उत्त्पत्ति .से लेकर लय तक रहस्य और रोमांच है कालपुरुष का सम्बन्ध किस तरह ब्रम्हांडीय पिंडो से है यह आज भी एक रहस्य है किंतु ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा मध्यम है जिसके द्वारा इस रहस्य से पर्दा हटाया जा सकता है


सूर्य (सिंह ) :-यह काल पुरूष के शरीर में उदर,एवं नेत्र का कारक है सूर्य के क्षीण होने पर यह अंग रोग ग्रस्त हो जाते है खास कर सूर्य की दशा महादशा में यह प्रभावित होते है यह काल पुरूष में उदर पर स्थित है

चंद्रमा (कर्क ):-यह बाए नेत्र के साथ ह्रदय का कारक है चंद्रमा के प्रभाव से हृदयघात ,जलोदर ,नेत्र पीडा ,एवं विचलन के कारन उन्माद रोग होता है कालपुरूष में यह ह्रदय में स्थित है

मंगल (मेष ,वृश्चिक ):-यह काल पुरूष के सर ,एवं रक्त का कारक है उच्च रक्तचाप,मस्तिष्क सबंधी रोग या चोट मंगल जनित रोग है

बुध (मिथुन ,कन्या ):-यह काल पुरूष के छाती ,तथा नाभि के निचले भाग पर अपना आधिपत्य रखता है इसके दूषित होने पर फेफडे ,छाती नस ,पेडू से सबंधित रोग होते है

गुरु (धनु, मीन ):-यह जंघा प्रदेश ,तथा तलुए पर प्रभाव रखता है गुरु नाभिचक्र का स्वमी होने के कारण यह काल पुरूष के उदर भाग को पीड़ित करता है

शुक्र (वृषभ ,तुला ):-कालपुरुष में यह चेहरे ,एवं जनेंद्रियो का स्वामी है शुक्र के बाधित होने पर मुख सबंधी रोग जैसे त्वचा रोग ,तथा जनेंद्रियो से सम्बंधित रोग होता है

शनि (मकर ,कुम्भ ):-कालपुरुष में शनि पैर का कारक है पैर में .हड्डियों से सम्बंधित रोग चोट शनि के दूषित परिणाम है

राहू -केतु :-काल पुरूष के शरीर में वो प्राण धारा है जिसके उर्ध्वगामी होने पर काल पुरूष स्वयं परमात्मा स्वरुप होजाता है और अधोगामी होने पर स्वयं के लिए कालनेमी कहलाता है

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